What is Lakar in Sanskrit?
संस्कृत भाषा में लकार कुल दस होते हैं। इन सभी के नाम इस प्रकार हैं।— लट् लकार (Present Tense), लोट् लकार (Imperative Mood), लङ्ग् लकार (Past Tense), लृट् लकार (Second Future Tense), विधिलिङ्ग् लकार (Potential Mood), आशीर्लिन्ग लकार (Benedictive Mood), लिट् लकार (Past Perfect Tense), लुट् लकार (First Future Tense or Periphrastic), लृङ्ग् लकार (Conditional Mood), लुङ्ग् लकार (Perfect Tense)। उनमें से सबसे मुख्य पाँच लकार होते हैं। (लट् लकार, लङ् लकार, लोट् लकार, लृट् लकार तथा विधि लिङ् लकार) ही प्रचलन में है और इन्ही संस्कृत लाकर का सबसे ज्यादा प्रयोग भी किया जाता है। आज हम संस्कृत में लकार की पूरी जानकारी लेंगे उदाहरण सही तो आप ध्यान से पढ़ें और आसानी से समझें Sanskrit main Lakar (Lakar in Sanskrit) का पूरा ज्ञान।
लट् लकार Lat Lakar in Sanskrit
वर्तमाने लट्– लट् लकार – (वर्तमान काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। क्रिया के जिस रूप से कार्य का वर्तमान समय में होना पाया जाता है, उसे वर्तमान काल कहते हैं, जैसे- राम घर जाता है- रामः गृहं गच्छति। इस वाक्य में ‘जाना’ क्रिया का प्रारम्भ होना तो पाया जाता है, लेकिन समाप्त होने का संकेत नहीं मिल रहा है। ‘जाना’ क्रिया निरन्तर चल रही है। अतः यहाँ वर्तमान काल है।

क्रिया सदैव अपने कर्ता के अनुसार ही प्रयुक्त होती है। कर्त्ता जिस पुरुष, वचन तथा काल का होता है, क्रिया भी उसी पुरुष, वचन तथा काल की ही प्रयुक्त होती है। यह स्पष्ट ही किया जा चुका है कि मध्यम पुरुष में युष्मद् शब्द (त्वम्) के रूप तथा उत्तम पुरुष में अस्मद् शब्द (अहम्) के रूप ही प्रयुक्त होते हैं। शेष जितने भी संज्ञा या सर्वनाम के रूप हैं, वे सब प्रथम पुरुष में ही प्रयोग किये जाते हैं। Lat Lakar in Sanskrit
लट् लकार वर्तमान काल धातु रूप संरचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरूष | ति | त: | अन्ति |
मध्यम पुरूष | सि | थ: | थ |
उत्तम पुरूष | आमि | आव: | आम: |
लट् लकार वर्तमान काल धातु रूप के कुछ उदाहरण
1. पठ् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पठति | पठत: | पठन्ति |
मध्यम पुरुष | पठसि | पठथः | पठथ |
उत्तम पुरुष | पठामि | पठावः | पठामः |
2. गम् / गच्छ धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | गच्छति | गच्छतः | गच्छन्ति |
मध्यमपुरुषः | गच्छसि | गच्छथः | गच्छथ |
उत्तमपुरुषः | गच्छामि | गच्छावः | गच्छामः |
3. लिख् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | लिखति | लिखतः | लिखन्ति |
मध्यम पुरुष | लिखसि | लिखथः | लिखथ |
उत्तम पुरुष | लिखामि | लिखावः | लिखामः |
4. भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | भवति | भवतः | भवन्ति |
मध्यमपुरुषः | भवसि | भवथः | भवथ |
उत्तमपुरुषः | भवामि | भवावः | भवामः |
लट् लकार के वाक्य एवं उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | वह पढ़ता है। सः पठति। वह पढ़ती है। सा पठति। फल गिरता है। फलं पतति। आप जाते हैं। भवान् गच्छति। | वे दोनों पढ़ते हैं। तौ पठतः। वे दोनों पढ़ती हैं। ते पठतः। दो फल गिरते हैं। फले पततः। आप दोनों जाते हैं। भवन्तौ गच्छतः। | वे सब पढ़ते हैं। ते पठन्ति। वे सब पढ़ती हैं। ता पठन्ति। फल गिरते हैं। फलानि पतन्ति। आप सब जाते हैं। भवन्तः गच्छन्ति। |
मध्यम पुरुष | तुम पढ़ते हो। त्वं पठसि। | तुम दोनों पढ़ते हो। युवां पठथः। | तुम सब पढ़ते हो। यूयं पठथ। |
उत्तम पुरुष | मैं पढ़ता हूँ। अहं पठामि। | हम दोनों पढ़ते हैं। आवां पठावः। | हम सब पढ़ते हैं। वयं पठामः। |
1. युष्मद् तथा अस्मद् के रूप स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग में एक समान ही होते हैं।
2. वर्तमान काल की क्रिया के आगे ‘स्म‘ जोड़ देने पर वह भूतकाल की हो जाती है, जैसे– रामः गच्छति। (राम जाता है), वर्तमान काल- रामः गच्छति स्म। (राम गया था) भूत काल।
लट् लकार में अनुवाद or लट् लकार के वाक्य
- अहम् पठामि । – मैं पढ रहा हूँ ।
- अहम् खादामि । – मैं खा रहा हूँ।
- अहम् वदामि । (मैं बोल रहा हूँ)
- त्वम गच्छसि । (तुम जा रहे हो)
- सः पठति (वह पढता है)
- तौ पठतः (वे दोनो पढते हैं)
- ते पठन्ति (वे सब पढते हैं)
- युवाम वदथः (तुम दोनो बताते हो )
- युयम् वदथ (तुम सब बताते हो, बता रहे हो)
- आवाम् क्षिपावः (हम दोनो फेंकते हैं)
- वयं सत्यम् कथामः (हम-सब सत्य कहते हैं)
लट् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का अनुवाद व उदाहरण
- जब मैं यहाँ होता हूँ तब वह दुष्ट भी यहीं होता है। – यदा अहम् अत्र भवामि तदा सः दुष्टः अपि अत्रैव भवति।
- जब हम दोनों विद्यालय में होते हैं… – यदा आवां विद्यालये भवावः …
- तब तुम दोनों विद्यालय में क्यों नहीं होते हो ? – तदा युवां विद्यालये कथं न भवथः ?
- जब हम सब प्रसन्न होते हैं तब वे भी प्रसन्न होते हैं। – यदा वयं प्रसन्नाः भवामः तदा ते अपि प्रसन्नाः भवन्ति।
- प्राचीन काल में हर गाँव में कुएँ होते थे। – प्राचीने काले सर्वेषु ग्रामेषु कूपाः भवन्ति स्म।
- सब गाँवों में मन्दिर होते थे। – सर्वेषु ग्रामेषु मन्दिराणि भवन्ति स्म।
- मेरे गाँव में उत्सव होता था। – मम ग्रामे उत्सवः भवति स्म।
- आजकल मनुष्य दूसरों के सुख से पीड़ित होता है। – अद्यत्वे मर्त्यः परेषां सुखेन पीडितः भवति।
- जो परिश्रमी होता है वही सुखी होता है। – यः परिश्रमी भवति सः एव सुखी भवति।
- केवल बेटे ही सब कुछ नहीं होते… – केवलं पुत्राः एव सर्वं न भवन्ति खलु…
- बेटियाँ बेटों से कम नहीं होतीं। – सुताः सुतेभ्यः न्यूनाः न भवन्ति।
लङ्ग् लकार Lang Lakar in Sanskrit
अनद्यतने लङ्– लङ् लकार – (अनद्यतन भूत काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. अनद्यतन भूत में लङ् लकार होता है, जो कार्य आज से पूर्व हो चुका है अर्थात् क्रिया आज समाप्त नहीं हुई बल्कि कल या उससे भी पूर्व हो चुकी है, वह अनद्यतन काल होता है।Lang Lakar in Sanskrit

लङ्ग् लकार धातु रूप उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | अभवत् | अभवताम् | अभवन् |
मध्यमपुरुषः | अभवः | अभवतम् | अभवत |
उत्तमपुरुषः | अभवम् | अभवाव | अभवाम |
अस् (होना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | आसीत् | आस्ताम् | आसन् |
मध्यम पुरुष | आसीः | आस्तम् | आस्त |
उत्तम पुरुष | आसम् | आस्व | आस्म |
हस् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अहसत् | अहसताम् | अहसन् |
मध्यम पुरुष | अहसः | अहसतम् | अहसत |
उत्तम पुरुष | अहसम् | अहसाव | अहसाम |
पठ धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अपठत् | अपठातम् | अपठन् |
मध्यम पुरुष | अपठः | अपठतम् | अपठत |
उत्तम पुरुष | अपठम् | अपठाव | अपठाम |
लङ्ग् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | उसने पढ़ा। स: अपठत्। | उन दोनों ने पढ़ा। तौ अपठताम्। | उन सबने पढ़ा। ते अपठन्। |
मध्यम पुरुष | तुमने पढ़ा। त्वम् अपठः। | तुम दोनों ने पढ़ा। युवाम् अपठतम्। | तुम सबने पढ़ा। यूयं अपठत। |
उत्तम पुरुष | मैंने पढ़ा। अहम् अपठम्। | हम दोनों ने पढ़ा। आवाम् अपठाव। | हम सबने पढ़ा। वयम् अपठाम्। |
‘स्वर’ आगे होने पर ‘म’ का अनुस्वार नहीं होता है अतः यहाँ ‘अ’ स्वर होने के कारण ‘त्वम्’ आदि के ‘म’ को अनुस्वार नहीं किया गया है।
लङ्ग् लकार में अनुवाद or लङ्ग् लकार के वाक्य
- कल मेरे पैर बहुत थक गए थे। – ह्यः मम चरणौ भूरि श्रान्तौ अभवताम्।
- परसों मेरे टखनों में बहुत पीड़ा हुई। – परह्यः मम गुल्फयोः महती पीडा अभवत्।
- इस कारण तुम भी दुःखी हुए। – अनेन कारणेन त्वम् अपि दुःखी अभवः।
- अब दुःखी मत होओ। – सम्प्रति दुःखी मा स्म भवः।
- तुम दोनों बीते वर्ष प्रथमश्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। – युवां व्यतीते वर्षे प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णौ अभवतम्।
लङ्ग् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद व उदाहरण
- मैं तो अनुत्तीर्ण हो गया था भाई – अहं तु अनुत्तीर्णः अभवं भ्रातः
- तुम सब प्रसन्न हुए थे। – यूयं प्रसन्नाः अभवत,
- हम सब दुःखी हुए थे। – वयं खिन्नाः अभवाम।
- मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द हुआ। – मम जान्वोः महती पीडा अभवत्।
- परसों मेरे गायन से सब लोग प्रसन्न हुए थे। – परह्यः मम गायनेन सर्वे जनाः प्रसन्नाः अभवन्।
लोट् लकार Lot Lakar in Sanskrit
आशिषि लिङ् लोटौं– लोट् लकार – (आज्ञार्थक), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. आज्ञा, प्रार्थना अनुमति, आशीर्वाद आदि का बोध कराने के लिये लोट् लकार का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
- आज्ञा– त्वं गृहं गच्छ। (तुम घर जाओ।)
- प्रार्थना– भवान मम गृहं आगच्छतु। (आप मेरे घर आयें।)
- अनुमति– अहं कुत्र गच्छानि? (मैं कहाँ जाऊँ ?)
- आशीर्वाद– त्वं चिरं जीव। (तुम बहुत समय तक जियो।) Lot Lakar in Sanskrit

लोट् लकार धातु रूप उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | भवतु/भवतात् | भवताम् | भवन्तु |
मध्यमपुरुषः | भव/भवतात् | भवतम् | भवत |
उत्तमपुरुषः | भवानि | भवाव | भवाम |
कथ् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | कथयतु/कथयतात् | कथयताम् | कथयन्तु |
मध्यम पुरुष | कथय/कथयतात् | कथयतम् | कथयत |
उत्तम पुरुष | कथयानि | कथयाव | कथयाम |
पठ धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पठतु | पठताम् | पठन्तु |
मध्यम पुरुष | पठ | पठतम् | पठत |
उत्तम पुरुष | पठानि | पठाव | पठाम |
हस् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | हसतात्/हसतु | हसताम् | हसन्तु |
मध्यम पुरुष | हस/हसतात् | हसतम् | हसत |
उत्तम पुरुष | हसानि | हसाव | हसाम |
पत् (गिरना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पततु | पतताम् | पतन्तु |
मध्यम पुरुष | पत | पततम् | पतत |
उत्तम पुरुष | पतानि | पताव | पताम |
लोट् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | वह पढ़े। सः पठतु। | वे दोनों पढ़े। तौ पठताम्। | वे सब पढ़े। ते पठन्तु। |
मध्यम पुरुष | तुम पढ़ो। त्वं पठ। | तुम दोनों पढ़ो। युवां पठतम्। | तुम सब पढ़ो। यूयम् पठत। |
उत्तम पुरुष | मैं पढ़ूँ। अहं पठानि। | हम दोनों पढ़े। आवां पठाव। | हम सब पढ़े। वयं पठाम। |
लोट् लकार में अनुवाद or लोट् लकार के वाक्य
- त्वम् उपविश। – तुम बैठो।
- भवन्तः पठन्तु। – आप लोग पढ़िए।
- श्याम भवान् मया सह चलतु। – श्याम, मेरे साथ चलो।
- श्याम, त्वं मया सह चल। – श्याम, मेरे साथ चलो।
- श्यामः मया सह चलतु। – श्याम को मेरे साथ चलने दो।
- बालका: उद्याने क्रीडन्तु। – बच्चो को खेलने दो।
- शिष्य: पाठं पठतु। – शिष्यों को पढ़ने दो।
- अहं भोजनं खादानि किम् ? – क्या मैं भोजन खा लूँ ?
- नंदाम शरदः शतम्। – हम सैकड़ो वर्षोँ के लिए आनन्दित रहें।
- राम त्वं जलम् पिब। – राम तुम जल पियो।
- राम जलम् पिब। – राम जल पियो।
- भवन्तः जलम् पिबन्तु। – आप जल पीजिये।
लोट् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद और उदाहरण
- वह मेरा मित्र हो जाए। – असौ मम सुहृद् भवतु।
- वे दोनों मित्र सफल हों। – तौ वयस्यौ सफलौ भवताम्।
- मेरा मित्र आयुष्मान् हो। – मम सखा आयुष्मान् भवतु (भवतात्)।
- तुम्हारे बहुत से मित्र हों। – तव बहवः मित्राणि भवन्तु।
- तू सफल हो। – त्वं सफलः भव (भवतात्)।
- इस समय तुम दोनों को यहाँ होना चाहिए। – एतस्मिन् समये युवाम् अत्र भवतम्।
- तुम सब वर्चस्वी होओ। – यूयं वर्चस्विनः भवत।
- मैं कहाँ होऊँ ? – अहं कुत्र भवानि ?
- हम दोनों उस मित्र के घर होवें ? – आवां तस्य मित्रस्य गृहे भवाव ?
- हम सब यहाँ विराजमान हों। – वयम् अत्र विराजमानाः भवाम।
- हम सभी जीवों के मित्र हों। – वयं सर्वेषां जीवानां मित्राणि भवाम।
- वह लोभी वैद्य मेरे पास नहीं होना चाहिए। – सः गृध्नुः भिषक् मम समीपे मा भवतु।
- वे दोनों लोभी पुरुष कार्यालय में न हों। – तौ गर्धनौ पुरुषौ कार्यालये न भवताम्।
- जब मैं यहाँ होऊँ तब वे लोभी यहाँ न हों। – यदा अहम् अत्र भवानि तदा ते लुब्धाः अत्र न भवन्तु।
- तुम लोभी मत बनो। – त्वम् अभिलाषुकः मा भव।
- धन से मतवाले मत होओ। – धनेन मत्तः मा भव।
- तुम दोनों महालोभियों को तो महालोभियों के बीच ही होना चाहिए। – युवां लोलुपौ तु लोलुभानां मध्ये एव भवतम्।
- तुम सब प्रसन्नता से मतवाले मत होओ। – यूयं प्रसन्नतया उत्कटाः मा भवत।
- हे भगवान् ! मैं आपकी कथा का लोभी होऊँ। – हे भगवन्! अहं भवतः कथायाः लोलुपः भवानि।
- मैं आपके सौन्दर्य का लोलुप होऊँ। – अहं भवतः सौन्दर्यस्य लोलुभः भवानि।
- हम दोनों धन के लोभी न हों। – आवां धनस्य अभिलाषुकौ न भवाव।
- धन पाकर हम सब मतवाले न हों। – धनं लब्ध्वा वयं शौण्डाः न भवाम।
- ज्ञान से उच्छृङ्खल न हों। – ज्ञानेन उद्धताः न भवाम।
- वे मतवाले हमारे पास कभी न हों। – ते क्षीबाः अस्माकं समीपे कदापि न भवन्तु ।
विधिलिङ्ग् लकार Vidhiling Lakar in Sanskrit
विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ् – विधिलिङ् लकार – (चाहिए के अर्थ में), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत विधि (चाहिये), निमन्त्रण, आदेश, विधान, उपदेश, प्रश्न तथा प्रार्थना आदि अर्थों का बोध कराने के लिये विधि लिङ् लकार का प्रयोग किया जाता है;जैसे–
- विधि– सत्यं ब्रूयात। (सत्य बोलना चाहिये), प्रियं ब्रूयात्। (प्रिय बोलना चाहिये।)
- निमन्त्रण– भवान अद्य अत्र भक्षयेत्। (आप आज यहाँ भोजन करें।)
- आदेश– भृत्यः क्षेत्रे गच्छेत्। (नौकर खेत पर जाये।)
- प्रश्न– त्वंम् किम कुर्याः? (तुम्हें क्या करना चाहिये?)
- इच्छा– यूयं सुखी भवेत्। (तुम खुश रहो।) Vidhiling Lakar in Sanskrit

विधिलिङ् लकार धातु रूप उदाहरण
दा धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | दद्यात् | दद्याताम् | दद्युः |
मध्यम पुरुष | दद्याः | दद्यातम् | दद्यात |
उत्तम पुरुष | दद्याम् | दद्याव | दद्याम |
दृश् / पश्य धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | पश्येत् | पश्येताम् | पश्येयुः |
मध्यमपुरुषः | पश्येः | पश्येतम् | पश्येत |
उत्तमपुरुषः | पश्येयम् | पश्येव | पश्येम |
पत् (गिरना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पतेत् | पतेताम् | पतेयुः |
मध्यम पुरुष | पतेः | पतेतम् | पतेत |
उत्तम पुरुष | पतेयम् | पतेव | पतेम |
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | भवेत् | भवेताम् | भवेयुः |
मध्यमपुरुषः | भवेः | भवेतम् | भवेत |
उत्तमपुरुषः | भवेयम् | भवेव | भवेम |
कर्ता, क्रिया, वचन तथा पुरुष अनुसार विधि लिङ् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | उसे पढ़ना चाहिये। सः पठेत्। | उन दोनों को पढ़ना चाहिये। तौ पठेताम्। | उन सबको पढ़ना चाहिये। ते पठेयुः। |
मध्यम पुरुष | तुम्हें पढ़ना चाहिये। त्वं पठे। | तुम दोनों को पढ़ना चाहिये। युवां पठेतम्। | तुम सबको पढ़ना चाहिये। यूयं पठेत। |
उत्तम पुरुष | मुझे पढ़ना चाहिये। अहं पठेयम्। | हम दोनों को पढ़ना चाहिये। आवां पठेव्। | हम सबको पढ़ना चाहिये। वयं पठेमः। |
अंग्रेजी भाषा के May, Might, Must, Should के समान लिंग लकार होता है।
विधिलिङ् लकार में अनुवाद or विधिलिङ् लकार के वाक्य
- उन सारे गुप्तचरों को राष्ट्रभक्त होना चाहिए। (विधि) = ते सर्वे स्पशाः राष्ट्रभक्ताः भवेयुः।
- तुम्हें गुप्तचर के घर में होना चाहिए। (विधि) = त्वं गूढपुरुषस्य गृहे भवेः।
- तुम दोनों को भेदिया होना चाहिए। (सम्भावना) = युवां स्पशौ भवेतम् ।
- तुम सबको भेदियों से दूर रहना चाहिए।(विधि, आज्ञा) = यूयं चारेभ्यः दूरं भवेत।
- ये दवाएँ इस रोग के लिए पर्याप्त होनी चाहिए। = एतानि भैषज्यानि एतस्मै उपतापाय अलं भवेयुः।
- हम योगी हों। = वयं योगिनः भवेम।
- जिससे रोग न हों। = येन रुजाः न भवेयुः।
- हम दोनों सदाचारी होवें। = आवां सदाचारिणौ भवेव।
- जिससे रोग न हों। = येन आमयाः न भवेयुः।
- हमारे देश में निपुण वैद्य होवें। = अस्माकं देशे निपुणाः वैद्याः भवेयुः।
- कोई भी वैद्य धूर्त न हो । = कः अपि चिकित्सकः धूर्तः न भवेत्।
- सभी वैद्य धार्मिक होवें। = सर्वे अपि अगदङ्काराः धार्मिकाः भवेयुः।
- तू दक्ष वैद्य होवे। = त्वं दक्षः भिषक् भवेः ।
- तुम दोनों लोभी वैद्य न होओ। = युवां लोलुपौ चिकित्सकौ न भवेतम् ।
- तुम सुवर्णभस्म खाकर पुष्ट होओ। = त्वं काञ्चनभस्मं भुक्त्वा पुष्टः भवेः।
- यह दवा खाकर तो दुर्बल भी बलवान् हो जाए। = एतत् औषधं भुक्त्वा दुर्बलः अपि बलवान् भवेत्।
- यह दवा तेरे लिए पुष्टिकर होवे। = एतत् भेषजं तुभ्यं पुष्टिकरं भवेत्।
- सभी रोगहीन होवें। = सर्वे अपि अनामयाः भवेयुः।
- लगता है, इस चिकित्सालय में अच्छी चिकित्सा होगी। = मन्ये , अस्मिन् चिकित्सालये सुष्ठु रुक्प्रतिक्रिया भवेत् ।
- मैं आयुर्वेद की बात मानने वाला होऊँ। = अहं आयुर्वेदस्य वचनकरः भवेयम्।
- तुम दोनों इस रोग से शीघ्र मुक्त होओ। = युवाम् अस्मात् गदात् शीघ्रं मुक्तौ भवेतम् ।
- हे भगवान् ! मैं इस रोग से जल्दी छूट जाऊँ। = हे भगवन् ! अहं अस्मात् आमयात् शीघ्रं मुक्तः भवेयम्।
लुट् लकार Lut Lakar in Sanskrit
अनद्यतने लुट् – लुट् लकार – (अनद्यतन भविष्यत काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. अनद्यतन भविष्यत काल में लुट् लकार का प्रयोग होता है। बीती हुई रात्रि के बारह बजे से, आने वाली रात के बारह बजे तक के समय को ‘अद्यतन’ (आज का समय) कहा जाता है। आने वाली रात्रि के बारह बजे के बाद का जो समय होता है उसे अनद्यतन भविष्यत काल कहते हैं; जैसे– अहं श्व: गमिष्यामि। (मैं कल जाऊँगा) Lut Lakar in Sanskrit

लुट लकार धातु रूप के कुछ उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | भविता | भवितारौ | भवितारः |
मध्यमपुरुषः | भवितासि | भवितास्थः | भवितास्थ |
उत्तमपुरुषः | भवितास्मि | भवितास्वः | भवितास्मः |
दा धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | दाता | दातारौ | दातारः |
मध्यम पुरुष | दातासि | दातास्थः | दातास्थ |
उत्तम पुरुष | दातास्मि | दातास्वः | दातास्मः |
गम् / गच्छ धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | गन्ता | गन्तारौ | गन्तारः |
मध्यमपुरुषः | गन्तासि | गन्तास्थः | गन्तास्थ |
उत्तमपुरुषः | गन्तास्मि | गन्तास्वः | गन्तास्मः |
चल् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | चलिता | चलितारौ | चलितारः |
मध्यम पुरुष | चलितासि | चलितास्थः | चलितास्थ |
उत्तम पुरुष | चलितास्मि | चलितास्वः | चलितास्मः |
क्रीड् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | क्रीडिता | क्रीडितारौ | क्रीडितारः |
मध्यम पुरुष | क्रीडितासि | क्रीडितास्थः | क्रीडितास्थ |
उत्तम पुरुष | क्रीडितास्मि | क्रीडितास्वः | क्रीडितास्मः |
लुट् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | वह पढ़ेगा/पढ़ेगी। सः/सा पठिता। | वे दोनों पढ़ेगे/पढ़ेगी। तौ/ते पठितारौ। | वे सब पढ़ेगे/पढ़ेगी। ते/ता पठितारः। |
मध्यम पुरुष | तुम पढ़ोगे/पढ़ोगी। त्वं पठितासि। | तुम दोनों पढ़ोगे/पढ़ोगी। युवां पठितास्थः। | तुम सब पढ़ोगे/पढ़ोगी। यूयं पठितास्थ। |
उत्तम पुरुष | मैं पढूंगा/पढूंगी। अहं पठितास्मि। | हम दोनों पढ़ेगे/पढ़ेगी। आवां पठितास्वः। | हम सब पढ़ेगे/पढ़ेगी। वयं पठितास्मः। |
लुट् लकार में अनुवाद or लुट् लकार के वाक्य
- योध्यां श्व: प्रयातासि कपे भरतपालिताम् । – हे वानर, तू कल भरतपालित अयोध्या में जायेगा।
- पंचषैरहोभि: वयमेव तत्रागन्तार:। – पांच छ: दिनों में हम ही वहाँ जायेंगे।
- यह मुनि कल उस झोपड़ी में होगा। – अयं मुनिः श्वः तस्यां पर्णशालायां भविता।
- वे दोनों वेदपाठी परसों उस यज्ञभवन में होंगे। – अमू छान्दसौ परश्वः अमुष्मिन् चैत्ये भवितारौ।
- वे वेदपाठी कल इन यज्ञशालाओं में होंगे। – अमी श्रोत्रियाः श्वः एषु आयतनेषु भवितारः।
- तुम परसों अध्यापक के साथ पर्णशाला में होगे। – त्वं परश्वः उपाध्यायेन सह उटजे भवितासि।
- तुम दोनों कल यज्ञशाला में होगे। – युवां श्वः चैत्ये भवितास्थः।
- वहाँ वेदपाठियों का सामगान होगा। – तत्र छान्दसानां सामगानं भविता।
- तुम सब परसों कुटिया में होगे। – यूयं परश्वः उटजे भवितास्थ।
- वहाँ अगदतन्त्र का व्याख्यान होगा। – तत्र अगदतन्त्रस्य व्याख्यानं भविता।
- मैं कल उस कुटी में होऊँगा। – अहं श्वः तस्मिन् उटजे भवितास्मि।
- उसी में दो उपाध्याय होंगे। – तस्मिन् एव द्वौ उपाध्यायौ भवितारौ।
- हम दोनों परसों उस चैत्य में नहीं होंगे। – आवां परश्वः तस्मिन् चैत्ये न भवितास्वः।
- हम सब कल वेदपाठियों की कुटी में होंगे। – वयं श्वः छान्दसानाम् उटजेषु भवितास्मः ।
- वहीं ऋग्वेद का जटापाठ होगा। – तत्र एव ऋग्वेदस्य जटापाठः भविता।
- उपाध्याय लोग भी वहीं होंगे। – अध्यापकाः अपि तत्र एव भवितारः।
- हम लोग भी वहीं होंगे। – वयम् अपि तत्र एव भवितास्मः।
लुट् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
- तेरा यह कार्य परसों रात में होगा। – तव इदं कार्यं परश्वः निशायां भविता।
- आप दोनों कल रात प्रयाग में नहीं होंगे क्या ? – भवन्तौ श्वः रात्रौ प्रयागे न भवितारौ किम् ?
- वे सब तो परसों रात प्रयाग में ही होंगे। – ते तु परश्वः क्षपायां प्रयागे एव भवितारः।
- हम भी वहीं होंगे। – वयम् अपि तत्र एव भवितास्मः।
- यह योगी कल रात कहाँ होगा ? – एषः योगी श्वः क्षणदायां कुत्र भविता ?
- तुम परसों रात विमान में होगे। – त्वं परश्वः नक्तं विमाने भवितासि।
- तुम दोनों तो रेलगाड़ी में होगे। – युवां तु रेलगन्त्र्यां भवितास्थः।
- परसों रात ही उत्सव होगा। – परश्वः नक्तम् एव उत्सवः भविता।
- हम दोनों उस उत्सव में नहीं होंगे। – आवां तस्मिन् उत्सवे न भवितास्वः।
- बाकी सब तो होंगे ही। – अन्याः सर्वे तु भवितारः एव।
- तुम दोनों उस उत्सव में क्यों नहीं होगे ? – युवां तस्मिन् उत्सवे कथं न भवितास्थः ?
- हम दोनों मथुरा में होंगे, इसलिए। – आवां मथुरायां भवितास्वः, अत एव।
- उसके बाद हम सब तुम्हारे घर होंगे। – तत्पश्चात् वयं तव भवने भवितास्मः।
- हमारा स्वागत होगा कि नहीं ? – अस्माकं स्वागतं भविता वा न वा ?
- अवश्य होगा। – अवश्यं भविता।
- हम आप सबको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। – वयं भवतः दृष्ट्वा भूरि प्रसन्नाः भवितास्मः।
लृट् लकार Lrit Lakar in Sanskrit
लृट् शेषे च – लृट् लकार – (सामान्य भविष्यत काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. सामान्य भविष्यत काल में ‘लुट् लकार’ का प्रयोग किया जाता है। क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य रूप से होने का पता चले, उसे ‘सामान्य भविष्यत काल’ कहते हैं; जैसे– विमला पुस्तकं पठिष्यति। (विमला पुस्तक पढ़ेगी।) Lut Lakar in Sanskrit

लृट् लकार धातु रूप उदाहरण
हस् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | हसिष्यति | हसिष्यतः | हसिष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | हसिष्यसि | हसिष्यथः | हसिष्यथ |
उत्तम पुरुष | हसिष्यामि | हसिष्यावः | हसिष्यामः |
नृत् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | नर्त्स्यति/नर्तिष्यति | नर्त्स्यतः/नर्तिष्यतः | नर्त्स्यन्ति/नर्तिष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | नर्त्स्यसि/नर्तिष्यसि | नर्त्स्यथः/नर्तिष्यथः | नर्त्स्यथ/नर्तिष्यथ |
उत्तम पुरुष | नर्त्स्यामि/नर्तिष्यामि | नर्त्स्यावः/नर्तिष्यावः | नर्त्स्यामः/नर्तिष्यामः |
क्रीड् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | क्रीडिष्यति | क्रीडिष्यतः | क्रीडिष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | क्रीडिष्यसि | क्रीडिष्यथः | क्रीडिष्यथ |
उत्तम पुरुष | क्रीडिष्यामि | क्रीडिष्यावः | क्रीडिष्यामः |
लिख् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | लेखिष्यति | लेखिष्यतः | लेखिष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | लेखिष्यसि | लेखिष्यथः | लेखिष्यथ |
उत्तम पुरुष | लेखिष्यामि | लेखिष्यावः | लेखिष्यामः |
लृट् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | वह पढ़ेगा/पढ़ेगी। सः/सा पठिष्यति। | वे दोनों पढ़ेगे/पढ़ेगी। तौ/ते पठिष्यतः। | वे सब पढ़ेगे/पढ़ेगी। ते/ता पठिष्यन्ति। |
मध्यम पुरुष | तुम पढ़ोगे/पढ़ोगी। त्वं पठिष्यसि। | तुम दोनों पढ़ोगे/पढ़ोगी। युवां पठिष्यथः। | तुम सब पढ़ोगे/पढ़ोगी। यूयं पठिष्यथ। |
उत्तम पुरुष | मैं पढूंगा/पढूंगी। अहं पठिष्यामि। | हम दोनों पढ़ेगे/पढ़ेगी। आवां पठिष्यावः। | हम सब पढ़ेगे/पढ़ेगी। वयं पठिष्यामः। |
लृट् लकार में अनुवाद or लृट् लकार के वाक्य
- सः गमिष्यति। = वह जायेगा।
- सः कुत्र गमिष्यति? = वह कहाँ जायेगा?
- सः गृहं गमिष्यति। = वह घर जायेगा।
- रामः ग्रामं गमिष्यति। = राम गाँव जायेगा।
- तौ विद्यालयं गमिष्यतः। = वे दोनों विद्यालय जायेंगे।
- ते नगरं गमिष्यन्ति। = वे सब नगर जायेंगे।
- त्वं कुत्र गमिष्यसि ? = तू कहाँ जायेगा?
- युवां कुत्र गमिष्यथः? = तुम दोनों कहाँ जाओगे?
- यूयं कुत्र गमिष्यथ? = तुम सब कहाँ जाऐंगे?
- अहं जयपुरं गमिष्यामि। = मैंजयपुर जाऊँगा।
- आवां मन्दिरं गमिष्यावः। = हम दोनों मन्दिर जाऐंगे।
- वयम् उदयपुरं गमिष्यामः। = हम उदयपुर जायेंगे।
लृट् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद और उदाहरण
- आज सन्ध्या को वह उद्यान में होगा। – अद्य सायं सः उद्याने भविष्यति।
- प्रातः वे दोनों मन्दिर में होंगे। – प्राह्णे तौ मन्दिरे भविष्यतः।
- दिन में वे कहाँ होंगे ? – दिवसे ते कुत्र भविष्यन्ति ?
- आज दोपहर तुम कहाँ होगे ? – अद्य मध्याह्ने त्वं कुत्र भविष्यसि ?
- आज दोपहर मैं विद्यालय में होऊँगा। – अद्य मध्याह्ने अहं विद्यालये भविष्यामि।
- तुम दोनों सायंकाल कहाँ होगे ? – युवां प्रदोषे कुत्र भविष्यथः ?
- हम दोनो तो सन्ध्यावन्दन में होंगे। – आवां तु सन्ध्यावन्दने भविष्यावः।
- क्या तुम वहाँ नहीं होगे ? – किं त्वं तत्र न भविष्यसि ?
- हाँ, मैं भी होऊँगा। – आम्, अहम् अपि भविष्यामि।
- हम सब दिन में वहीं होंगे। – वयं दिवा तत्र एव भविष्यामः।
- तुम सब तो सायंकाल में अपने घर होगे। – यूयं तु रजनीमुखे स्वगृहे भविष्यथ।
- और हम अपने घर होंगे। – वयं च स्वभवने भविष्यामः।
- तो उत्सव कैसे होगा ? – तर्हि उत्सवः कथं भविष्यति ?
- आप आज दोपहर में कहाँ होंगे ? – भवान् अद्य मध्याह्ने कुत्र भविष्यति ?
- आज दोपहर मैं खेल के मैदान में होऊँगा। – अद्य मध्याह्ने अहं क्रीडाक्षेत्रे भविष्यामि।
- तुम कहाँ होओगे ? – त्वं कुत्र भविष्यसि ?
- मैं भी वहीं होऊँगा। – अहम् अपि तत्र एव भविष्यामि।
- वहाँ नटों का खेल होगा। – तत्र शैलूषाणां कौतुकं भविष्यति।
- उसके बाद बच्चों का खेल होगा। – तत्पश्चात् बालकानां खेला भविष्यति।
- वहाँ तो बहुत से नट होंगे। – तत्र तु बहवः रङ्गजीवाः भविष्यन्ति खलु।
- तुम दोनों भी वहाँ होगे कि नहीं ? – युवाम् अपि तत्र एव भविष्यथः वा न वा ?
- हाँ हम दोनों भी वहीं होंगे। – आम्, आवाम् अपि तत्र एव भविष्यावः।
- हम सब भी अध्यापकों के साथ वहाँ होंगें। – वयम् अपि उपाध्यायैः सह तत्र भविष्यामः।
- बच्चों का खेल कब होगा? – बालानां कूर्दनं कदा भविष्यति ?
- नटों के खेल के बाद ही होगा। – भरतानां कुतकस्य पश्चात् एव भविष्यति।
- तब तो बहुत आनन्द होगा। – तर्हि तु भूरि मोदः भविष्यति।
- हाँ, आओ चलते हैं। – आम्, एहि चलामः।
लृङ्ग् लकार Lring Lakar in Sanskrit
लिङ निमित्ते लृङ्ग् क्रियातिपत्तौ – लृङ्ग् लकार – (हेतु हेतुमद भूतकाल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. क्रियातिपत्ति में लृङ्ग् लकार होता है। जहाँ पर भूतकाल की एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होती है, वहाँ पर हेतु हेतुमद भूतकाल होता है। इस काल के वाक्यों में एक शर्त सी लगी होती है; जैसे– यदि अहम् अपठिष्यम् तर्हि विद्वान अभविष्यम्। (यदि मैं पढ़ता तो विद्वान् हो जाता।)

जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो । जैसे :- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । (यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।)
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्न श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥अर्थात् लट् लकार वर्तमान काल में, लेट् लकार केवल वेद में, भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्, विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है। Lring Lakar in Sanskrit
लृङ्ग् लकार धातु रूप उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | अभविष्यत् | अभविष्यताम् | अभविष्यन् |
मध्यमपुरुषः | अभविष्यः | अभविष्यतम् | अभविष्यत |
उत्तमपुरुषः | अभविष्यम् | अभविष्याव | अभविष्याम |
अस् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अभविष्यत् | अभविष्यताम् | अभविष्यन् |
मध्यम पुरुष | अभविष्यः | अभविष्यतम् | अभविष्यत |
उत्तम पुरुष | अभविष्यम् | अभविष्याव | अभविष्याम |
हस् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अहसिष्यत् | अहसिष्यताम् | अहसिष्यन् |
मध्यम पुरुष | अहसिष्यः | अहसिष्यतम् | अहसिष्यत |
उत्तम पुरुष | अहसिष्यम् | अहसिष्याव | अहसिष्याम |
कथ् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अकथयिष्यत | अकथयिष्येताम् | अकथयिष्यन्त |
मध्यम पुरुष | अकथयिष्याः | अकथयिष्यतम्/अकथयिष्येथाम् | अकथयिष्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | अकथयिष्ये | अकथयिष्यावहि | अकथयिष्याम/अकथयिष्यामहि |
लृङ्ग् लकार के उदाहरण क्रिया, कर्ता, पुरुष तथा वचन अनुसार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | उसने पढ़ा होता। सः अपठिष्यत्। | उन दोनों ने पढ़ा होता। तौ अपठिष्यताम्। | उन सबने पढ़ा होता। ते अपठिष्यन्। |
मध्यम पुरुष | तुमने पढ़ा होता। त्वम् अपठिष्यः। | तुम दोनों ने पढ़ा होता। युवाम् अपठिष्यतम्। | तुम सबने पढ़ा होता। यूयम् अपठिष्यत। |
उत्तम पुरुष | मैंने पढ़ा होता। अहम् अपठिष्यम्। | हम दोनों ने पढ़ा होता। आवाम् अपठिष्याव। | हम सबने पढ़ा होता। वयम् अपठिष्याम। |
लृङ्ग् लकार में अनुवाद or लृङ्ग् लकार के वाक्य
- यदि तुम मक्खन खाते तो पुष्ट हो जाते। – यदि त्वं नवनीतम् अभक्षयिष्यः तर्हि पुष्टः अभविष्यः।
- तुम सब यदि दूध पीते तो दुर्बलता न होती। – यूयं यदि पयः अपास्यत तर्हि दौर्बल्यं न अभविष्यत्।
- यदि मैं लवण युक्त छाछ पीता तो मन्दाग्नि न होती। – यदि अहं लवणान्वितं तक्रम् अपास्यम् तर्हि मन्दाग्निः न अभविष्यत्।
- यदि तुम दोनों भी छाछ पीते तो हृदयशूल न होता। – यदि युवाम् अपि गोरसम् अपास्यतम् तर्हि हृदयशूलः न अभविष्यत्।
- यदि वह दूध पीता तो मोटा हो जाता। – यदि असौ क्षीरम् अपास्यत् तर्हि स्थूलः अभविष्यत्।
- यदि तुम घी खाते तो बलवान् होते । – यदि त्वं घृतम् अभक्षयिष्यः तर्हि बलवान् अभविष्यः ।
- यदि घर में घी होता तो खाता। – गृहे आज्यम् अभविष्यत् चेत् तर्हि अभक्षयिष्यम्।
लृङ्ग् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद व उदाहरण
- यदि वे छाछ पीते तो उनका दाह ठीक हो जाता। – यदि अमी कालशेयम् अपास्यन् तर्हि तेषां दाहः सुष्ठु अभविष्यत्।
- हम दोनों के घर गाय होती तो छाछ भी होता। – यदि आवयोः गृहे धेनुः अभविष्यत् तर्हि तक्रम् अपि अभविष्यत्।
- यदि हम दोनों घर में होते तो मक्खन खाते। – यदि आवां भवने अभविष्याव तर्हि नवोद्धृतम् अभक्षयिष्याव।
- हम सब वहाँ होते तो दूध से बनी वस्तुएँ खाते। – वयं तत्र अभविष्याम तर्हि पयस्यम् अभक्षयिष्याम।
- तुम होते तो तुम भी खाते। – त्वम् अभविष्यः तर्हि त्वम् अपि अभक्षयिष्यः।
- सोंठ और सेंधा नमक से युक्त छाछ पीते तो वात रोग न होता। – शुण्ठीसैन्धवयुतं तक्रम् अपास्यः तर्हि वातरोगः न अभविष्यत्।
- हींग और जीरा युक्त छाछ पीते तो अर्शरोग न होता। – हिङ्गुजीरयुतं मथितम् अपास्यः तर्हि अर्शः न अभविष्यत्।
- यदि घर में घी होता तो बच्चे बुद्धिमान् होते। – यदि गृहे सर्पिः अभविष्यत् तर्हि बालाः मेधाविनः अभविष्यन्।
- हमारे देश में गोरक्षा होती तो कुपोषण न होता। – अस्माकं देशे यदि गोरक्षा अभविष्यत् तर्हि कुपोषणं न अभविष्यत्।
आशीर्लिन्ग लकार Asirling Lakar in Sanskrit
आशी: – आशीर्लिन्ग लकार – (आशीर्वादात्मक), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. आशीर्वाद के अर्थ में आशीलिङ् लकार का प्रयोग किया जाता है, जैसे– रामः विजीयात्। (राम विजयी हो।)

आशीर्लिन्ग लकार का प्रयोग केवल आशीर्वाद अर्थ में ही होता है। महामुनि पाणिनि जी ने सूत्र लिखा है – “आशिषि लिङ्लोटौ।” अर्थात् आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार और लोट् लकार का प्रयोग करते हैं। जैसे – सः चिरञ्जीवी भूयात् = वह चिरञ्जीवी हो।
आशीर्लिन्ग लकार के प्रयोग बहुत कम दिखाई पड़ते हैं, और जो भी हैं वे सर्वाधिक भू धातु के ही होते हैं। अतः आपको भू धातु के ही रूप स्मरण कर लेना है बस। Asirling Lakar in Sanskrit
आशीर्लिन्ग लकार धातु रूप उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | भूयात् | भूयास्ताम् | भूयासुः |
मध्यमपुरुषः | भूयाः | भूयास्तम् | भूयास्त |
उत्तमपुरुषः | भूयासम् | भूयास्व | भूयास्म |
अस् (होना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | भूयात् | भूयास्ताम् | भूयासुः |
मध्यम पुरुष | भूयाः | भूयास्तम् | भूयास्त |
उउत्तम पुरुष | भूयासम् | भूयास्व | भूयास्म |
पिब् (पीना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | पिब्यात् | पिब्यास्ताम् | पिब्यासुः |
मध्यम पुरुष | पिब्याः | पिब्यास्तम् | पिब्यास्त |
उत्तम पुरुष | पिब्यासम् | पिब्यास्व | पिब्यास्म |
लिख् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | लिख्यात् | लिख्यास्ताम् | लिख्यासुः |
मध्यम पुरुष | लिख्याः | लिख्यास्तम् | लिख्यास्त |
उत्तम पुरुष | लिख्यासम् | लिख्यास्व | लिख्यास्म |
कर्ता, क्रिया, पुरुष तथा वचन अनुसार आशीर्लिङ् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | वह पढे। सः पठ्यात्। | वे दोनों पढ़े। तौ पठ्यास्ताम्। | वे सब पढ़े। ते पठ्यासु। |
मध्यम पुरुष | तुम पढ़ो। त्वं पठ्याः। | तुम दोनों पढ़ो। युवां पठ्यास्तम्। | तुम सब पढ़ो। यूयं पठ्यास्त। |
उत्तम पुरुष | मैं पढ़ूँ। अहं पठ्यासम्। | हम दोनों पढ़े। आवाम् पठ्यास्व। | हम सब पढ़े। वयम् पठ्यास्म। |
आशीर्लिन्ग लकार में अनुवाद or आशीर्लिन्ग लकार के वाक्य
- हम सब राष्ट्रभक्त हों। – वयं राष्ट्रभक्ताः भूयास्म।
- हम सब चिरञ्जीवी हों। – वयं चिरञ्जीविनः भूयास्म।
- तेरा पुत्र यशस्वी हो। – तव पुत्रः यशस्वी भूयात्।
- तुम्हारी दोनों पुत्रियाँ यशस्विनी हों। – तव उभे सुते कीर्तिमत्यौ भूयास्ताम्।
- आपके सभी पुत्र दीर्घायु हों। – भवतः सर्वे तनयाः चिरञ्जीविनः भूयासुः।
- तू आयुष्मान् हो। – त्वं जैवातृकः भूयाः।
- तुम दोनों यशस्वी होओ। – युवां समज्ञावन्तौ भूयास्तम्।
- तुम सब दीर्घायु होओ। – यूयं जैवातृकाः भूयास्त।
- मैं दीर्घायु होऊँ। – अहं चिरजीवी भूयासम्।
- हम दोनों यशस्वी होवें। – आवां समज्ञावन्तौ भूयास्व।
- हम सब आयुष्मान् हों। – वयम् आयुष्मन्तः भूयास्म।
- यह गर्भिणी वीर पुत्र को उत्पन्न करने वाली हो। – एषा आपन्नसत्त्वा वीरप्रसविनी भूयात्।
- ये सभी स्त्रियाँ पतिव्रताएँ हों। – एताः सर्वाः योषिताः सुचरित्राः भूयासुः।
- ये दोनों पतिव्रताएँ प्रसन्न रहें। – एते सुचरित्रे मुदिते भूयास्ताम्।
- हे स्वयं पति चुनने वाली पुत्री ! तू पति की प्रिय होवे। – हे पतिंवरे पुत्रि ! त्वं भर्तुः प्रिया भूयाः।
- तुम दोनों पतिव्रताएँ होवो । – युवां सत्यौ भूयास्तम् ।
- वशिष्ठ ने दशरथ की रानियों से कहा – वशिष्ठः दशरथस्य राज्ञीः उवाच
- तुम सब वीरप्रसविनी होओ। – यूयं वीरप्रसविन्यः भूयास्त ।
- मैं मधुर बोलने वाला होऊँ। – अहं मधुरवक्ता भूयासम्।
- सावित्री ने कहा – सावित्री उवाच
- मैं स्वयं पति चुनने वाली होऊँ। – अहं वर्या भूयासम्।
- माद्री और कुन्ती ने कहा -माद्री च पृथा च ऊचतुः
- हम दोनों वीरप्रसविनी होवें। – आवां वीरप्रसविन्यौ भूयास्व ।
लिट् लकार Lit Lakar in Sanskrit
परोक्षेलिट् – लिट् लकार – (परोक्ष भूत काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. ‘परोक्ष भूत काल’ में लिट् लकार का प्रयोग होता है। जो कार्य आँखों के सामने पारित होता है, उसे परोक्ष भूतकाल कहते हैं।

उत्तम पुरुष में लिट् लकार का प्रयोग केवल स्वप्न या उन्मत्त अवस्था में ही होता है; जैसे– सुप्तोऽहं किल विलाप। (मैंने सोते में विलाप किया।)
या जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । जैसे :– रामः रावणं ममार । ( राम ने रावण को मारा ।) Lit Lakar in Sanskrit
लिट् लकार धातु रूप संरचना
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
लिट् लकार (परोक्ष भूत काल) धातु रूप के कुछ उदाहरण
लिख् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | लिलेख | लिलिखतुः | लिलिखुः |
मध्यम पुरुष | लिलेखिथ | लिलिखथुः | लिलिख |
उत्तम पुरुष | लिलेख | लिलिखिव | लिलिखिम |
धाव् (दौडना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | दधाव | दधावतुः | दधावुः |
मध्यम पुरुष | दधाविथ | दधावथुः | दधाव |
उत्तम पुरुष | दधाव | दधाविव | दधाविम |
दा धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ददौ | ददतुः | ददुः |
मध्यम पुरुष | ददाथ/ददिथ | ददथुः | दद |
उत्तम पुरुष | ददौ | ददिव | ददिम |
अस् (होना) धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | बभूव | बभूवतुः | बभूवुः |
मध्यम पुरुष | बभूविथ | बभूवथुः | बभूव |
उउत्तम पुरुष | बभूव | बभूविव | बभूविम |
पुरुष तथा वचन के अनुसार लिट् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | उसने पढ़ा। सः पपाठ। | उन दोनो ने पढ़ा। तौ पेठतुः। | उन सबने पढ़ा। ते पेठुः। |
मध्यम पुरुष | तुमने पढ़ा। त्वं पेठिथ। | तुम दोनों ने पढ़ा। युवां पेठथुः | तुम सबने पढ़ा। यूयं पेठ। |
उत्तम पुरुष | मैंने पढ़ा। अहं पपाठ। | हम दोनों ने पढ़ा। आवां पेठिव। | हम सबने पढ़ा। वयं पेठिम। |
लिट् लकार में अनुवाद or लिट् लकार के वाक्य
- अपि कलिंगेष्ववस: ? – क्या तुम कलिंग में रहे ?
- नाहं कलिंगान् जगाम । – नहीं मैं कभी कलिंग देश में नहीं गया।
- अहम् उन्मत्त: सन् वनं विचचार । – मैंने पागलपन की दशा में जंगल में भ्रमण किया।
- अप्यहं निद्रित: सन् विललाप ? -क्या मैं निद्रित अवस्था में विलाप कर रहा था ?
- अज के पुत्र दशरथ हुए। – अजस्य पुत्रः दशरथः बभूव।
- वृद्धावस्था में दशरथ के चार पुत्र हुए। – स्थाविरे दशरथस्य चत्वारः सुताः बभूवुः।
- राम सब भाइयों के अग्रज हुए। – रामः सर्वेषां भ्रातॄणाम् अग्रियः बभूव।
- लक्ष्मण और शत्रुघ्न जुड़वा हुए। – लक्ष्मणः च शत्रुघ्नः च यमलौ बभूवतुः।
- युवावस्था में राम और लक्ष्मण अद्भुत धनुर्धर हुए। – यौवने रामः च लक्ष्मणः च अद्भुतौ धनुर्धरौ बभूवतुः।
- भारतवर्ष में आश्वलायन नामक ऋषि हुए थे। – भारतवर्षे आश्वलायनः नामकः ऋषिः बभूव।
- वे शारदामन्त्र के उपदेशक हुए। – सः शारदामन्त्रस्य उपदेशकः बभूव।
- अभिमन्यु तरुणाई में ही महारथी हो गया था। – अभिमन्युः तारुण्ये एव महारथः बभूव।
- एक दुर्वासा नाम वाले ऋषि हुए। – एकः दुर्वासा नामकः ऋषिः बभूव।
- जो अथर्ववेदीय मन्त्रों के उपदेशक हुए। – यः अथर्ववेदीयानां मन्त्राणाम् उपदेशकः बभूव।
- भारत में शंख और लिखित ऋषि हुए। – भारते शंखः च लिखितः च ऋषी बभूवतुः।
- भारत में ही रेखागणितज्ञ बौधायन हुए। – भारते एव रेखागणितज्ञः बौधायनः बभूव।
- भारत में ही शस्त्र और शास्त्र के वेत्ता परशुराम हुए। – भारते एव शस्त्रस्य च शास्त्रस्य च वेत्ता परशुरामः बभूव।
- भारत में ही वैयाकरण पाणिनि और कात्यायन हुए। – भारते एव वैयाकरणौ पाणिनिः च कात्यायनः च बभूवतुः।
- पाणिनि के छोटे भाई पिङ्गल छन्दःशास्त्र के उपदेशक हुए। – पाणिनेः अनुजः पिङ्गलः छन्दःशास्त्रस्य उपदेशकः बभूव।
- धौम्य के बड़े भाई उपमन्यु हुए। – धौम्यस्य अग्रियः उपमन्युः बभूव।
- उपमन्यु शैवागम के उपदेशक हुए। – उपमन्युः शैवागमस्य उपदेशकः बभूव।
- वे कृष्ण के भी गुरु थे। – सः कृष्णस्य अपि गुरुः बभूव।
- भारत में ही शिल्पशास्त्र के अट्ठारह उपदेशक हुए। – भारते एव शिल्पशास्त्रस्य अष्टादश उपदेशकाः बभूवुः।
लिट् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
- भारत में अनेक विद्वान् हुए। – भारते अनेके कोविदाः बभूवुः।
- उन विद्वानों में कुछ वैयाकरण हुए। – तेषु बुधेषु केचित् वैयाकरणाः बभूवुः।
- कुछ न्यायदर्शन के विद्वान् हुए। – केचित् न्यायदर्शनस्य पण्डिताः बभूवुः।
- कुछ साङ्ख्यदर्शन के विद्वान् हुए। – केचित् साङ्ख्यदर्शनस्य पण्डिताः बभूवुः।
- आचार्य व्याघ्रभूति वैयाकरण हुए। – आचार्यः व्याघ्रभूतिः वैयाकरणः बभूव।
- आचार्य अक्षपाद नैयायिक हुए। – आचार्यः अक्षपादः नैयायिकः बभूव।
- आचार्य पञ्चशिख सांख्यदर्शन के विद्वान् हुए। – आचार्यः पञ्चशिखः साङ्ख्यदर्शनस्य पण्डितः बभूव।
- वाचक्नवी गार्गी मन्त्रों की विदुषी हुई थी। – वाचक्नवी गार्गी मन्त्राणां विचक्षणा बभूव।
- पाण्डु के पाँच पुत्र हुए। – पाण्डोः पञ्च सुताः बभूवुः।
- वे सभी विद्वान् हुए। – ते सर्वे प्राज्ञाः बभूवुः।
- युधिष्ठिर धर्मशास्त्र और द्यूतविद्या के जानकार हुए। – युधिष्ठिरः धर्मशास्त्रस्य द्यूतविद्यायाः च कोविदः बभूव।
- भीम मल्लविद्या और पाकशास्त्र के वेत्ता हुए। – भीमसेनः मल्लविद्यायाः पाकशास्त्रस्य च सूरिः बभूव।
- सुकेशा ऋषि पाकशास्त्र के उपदेशक हुए थे। – सुकेशा ऋषिः पाकशास्त्रस्य उपदेशकः बभूव।
- श्रीकृष्ण भीमसेन का रसाला खाकर बहुत प्रसन्न हुए थे। – श्रीकृष्णः भीमसेनस्य रसालं भुक्त्वा भूरि प्रसन्नः बभूव।
- अर्जुन धनुर्वेद और गन्धर्ववेद के जानकार हुए। – फाल्गुनः धनुर्वेदस्य गन्धर्ववेदस्य च विपश्चित् बभूव।
- नकुल अश्वविद्या के ज्ञानी हुए। – नकुलः अश्वविद्यायाः कोविदः बभूव।
- आचार्य शालिहोत्र अश्वविद्या के प्रसिद्ध जानकार थे। – आचार्यः शालिहोत्रः अश्वविद्यायाः प्रथितः पण्डितः बभूव।
- सहदेव पशुचिकित्सा और शकुनशास्त्र के विद्वान् थे। – सहदेवः पशुचिकित्सायाः शकुनशास्त्रस्य च ज्ञः बभूव।
- कुन्ती अथर्ववेदीय मन्त्रों की विदुषी हुई। – पृथा अथर्ववेदीयानां मन्त्राणां पण्डिता बभूव।
- लल्लाचार्य और उत्पलाचार्य प्रसिद्ध गणितज्ञ हुए। – लल्लाचार्यः उत्पलाचार्यः च प्रसिद्धौ गणितज्ञौ बभूवतुः।
- मण्डनमिश्र की पत्नी भारती बड़ी विदुषी हुई। – मण्डनमिश्रस्य पत्नी भारती महती पण्डिता बभूव।
- भरद्वाज और शाकटायन वैमानिकरहस्य के ज्ञाता हुए। – भरद्वाजः शाकटायनः च वैमानिकरहस्यस्य विचक्षणौ बभूवतुः।
- शाकपूणि निरुक्त के प्रसिद्ध जानकार हुए थे। – शाकपूणिः निरुक्तस्य प्रथितः कृष्टिः बभूव।
- ऋतुध्वज की महारानी मदालसा तत्त्वज्ञ थी। – ऋतुध्वजस्य पट्टराज्ञी मदालसा तत्त्वज्ञा बभूव।
- भारत में एक नहीं, दो नहीं वरन् सहस्रों विद्वान् हुए हैं। – भारते एकः न, द्वौ न अपितु सहस्रशाः कोविदाः बभूवुः।
लुङ्ग् लकार Lung Lakar in Sanskrit
लुङ् – लुङ्ग् लकार – (सामान्य भूत काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत. लुङ् लकार में सामान्य भूत काल का प्रयोग होता है। क्रिया के जिस रूप में भूतकाल के साधारण रूप का बोध होता है, उसे सामान्य काल कहते हैं। सामान्य भूत काल का प्रयोग प्रायः सभी अतीत कालों के लिये किया जाता है; जैसे– अहं पुस्तकम् अपाठिषम्। (मैंने पुस्तक पढ़ी।) Lung Lakar in Sanskrit

लुङ्ग् लकार धातु रूप उदाहरण
भू / भव् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | अभूत् | अभूताम् | अभूवन् |
मध्यमपुरुषः | अभूः | अभूतम् | अभूत |
उत्तमपुरुषः | अभूवम् | अभूव | अभूम |
चल् धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अचालीत् | अचालिष्टाम् | अचालिषुः |
मध्यम पुरुष | अचालीः | अचालिष्टम् | अचालिष्ट |
उत्तम पुरुष | अचालिषम् | अचालिष्व | अचालिष्म |
ज्ञा धातु
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अज्ञासीत् | अज्ञासिष्टाम् | अज्ञासिषुः |
मध्यम पुरुष | अज्ञासीः | अज्ञासिष्टम् | अज्ञासिष्ट |
उत्तम पुरुष | अज्ञासिषम् | अज्ञासिष्व | अज्ञासिष्म |
कर्ता, क्रिया, वचन तथा पुरुष अनुसार लुङ् लकार के उदाहरण
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | उसने पढ़ा। स: अपाठीत्। | उन दोनों ने पढ़ा। तौ अपाठिष्ताम्। | उन सबने पढ़ा। ते अपाठिषु:। |
मध्यम पुरुष | तुमने पढ़ा। त्वम् अपाठी:। | तुम दोनों ने पढ़ा। युवाम् अपाठिष्टम् | तुम सबने पढ़ा। यूयम् अपाठिष्ट। |
उत्तम पुरुष | मैंने पढ़ा। अहम् अपाठिषम्। | हम दोनों ने पढ़ा। आवाम् अपाठिष्व। | हम सबने पढ़ा। वयम् अपाठिष्म। |
‘मा था ‘मास्म’ के आने पर धातु से पूर्व आने वाला ‘आ’ हट जाता है, जैसे– क्लैव्यं मा स्म गमः पार्थ। (हे पार्थ! तुम नपुंसकता प्राप्त मत करो।) यहाँ ‘मा’ के आ जाने पर अगम: के ‘अ’ का लोप होकर केवल ‘गमः शेष बचा है।
लुङ्ग् लकार में अनुवाद or लुङ्ग् लकार के वाक्य
- तुम्हारे घर सन्तान हुई। – तव गृहे सन्तानः अभूत्।
- महान् उत्सव हुआ। – महान् उत्सवः अभूत्।
- तुम्हारे माता और पिता आनन्दित हुए। – तव माता च पिता च आनन्दितौ अभूताम्।
- सभी आनन्दमग्न हो गए। – सर्वे आनन्दमग्नाः अभूवन्।
- तुम भी प्रसन्न हुए। – त्वम् अपि प्रसन्नः अभूः।
लुङ्ग् लकार के अन्य हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
- तुम दोनों बहुत आनन्दित हुए। – युवां भूरि आनन्दितौ अभूतम्।
- तुम सब थकित हो गये थे। – यूयं श्रान्ताः अभूत ।
- मैं भी थकित हो गया था। – अहम् अपि श्रान्तः अभूवम्।
- हम दोनों उत्सव से हर्षित हुए। – आवाम् उत्सवेन हर्षितौ अभूव।
- हम सब आनन्दित हुए। – वयम् आनन्दिताः अभूम।