Shivaji Maharaj Quotes in Sanskrit
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Shivaji Maharaj Quotes in Sanskrit with Meaning
सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्॥
अर्थ : सभी सुखी हों,
सभी निरोगी हों,
सभी को शुभ दर्शन हों और
कोई दु:ख से ग्रसित न हो.
अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थ : अट्ठारह पुराणों में व्यास के दो ही वचन हैं :
1. परोपकार ही पुण्य है. और
2. दूसरों को दुःख देना पाप है
Shivaji Maharaj Quotes in Sanskrit New
सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि
विषादो रणे न भीरुत्वम्।
तं भुवनत्रयतिलकं जनयति
जननी सुतं विरलम्।।
अर्थ : जिसको सुख सम्पत्ति. में प्रसन्न न हो,
संकट विपत्ति. में दु:ख न हो,
युद्ध में भय अथवा कायरता न हो,
तीनों लोगों में महान् ऐसे किसी
पुत्र को ही माता कभी-कभी ही जन्म देती है।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि,
पर्जन्यादन्नसम्भवः।।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो,
यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।
अर्थ : सम्पूर्ण प्राणी अन्न से पैदा होते हैं
तथा अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है,
वर्षा यज्ञ से और यज्ञ कर्म से पैदा होता है।
यस्मान्नोद्विजते लोको
लोकान्नोद्विजते च यः।।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो
यः स च मे प्रियः।।
अर्थ : जिससे कोई जीव दु:खी नहीं होता है
तथा जो स्वयं भी किसी जीव से दु:खी नहीं होता है
तथा जो प्रसन्नता, मानसिक संताप,
भय और दु:खों से रहित है, वही भक्त मेरा प्यारा है।
विद्या ददाति विनयं
विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति
धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थ : विद्या से विनय नम्रता आती है,
विनय से पात्रता सजनता आती है
पात्रता से धन की प्राप्ति होती है,
धन से धर्म और धर्म से
सुख की प्राप्ति होती है ।
विद्याभ्यास स्तपो
ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः।
अहिंसा गुरुसेवा च
निःश्रेयसकरं परम् ॥
अर्थ : विद्याभ्यास, तप,
ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा
और गुरुसेवा ये परम् कल्याणकारक हैं
Chhatrapati Shivaji Maharaj Quotes in Sanskrit
अलसस्य कुतो विद्या
अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो
मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
अर्थ : आलसी इन्सान को विद्या कहाँ?
विद्याविहीन को धन कहाँ ?
धनविहीन को मित्र कहाँ ?
और मित्रविहीन को सुख कहाँ ?
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अर्थ : गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है,
गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परम् ब्रह्म है;
उन सद्गुरु को प्रणाम.
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः॥
अर्थ : जहाँ नारी की पूजा होती है,
वहां देवता निवास करते हैं.
जहाँ इनकी पूजा नहीं होती है, वहां सब व्यर्थ है.
Shivaji Maharaj Status in Sanskrit
उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं
क्रियाविधिज्ञ व्यसनेव्यसक्तम्।
शुर कृतज्ञं दृढ़सौहृदञ्च,
लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः।।
अर्थ : उत्साह से पर्ण, आलस्य न करने वाले,
कार्य की विधि को जानने वाले,
बुरे कामों में न फंसने वाले
वीर अहसान मानने वाले,
पक्की मित्रता रखने वाले पुरुष के
पास रहने के लिए लक्ष्मी स्वयं जाती है।
Shivaji Sanskrit Slokas With Meaning in English
दानेन तल्यो निधिरस्ति नान्यों
लोभाच्च नान्योऽस्ति रिपुः पृथिव्याम्।
विभषणं शीलसमं न चान्यत्,
सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत्।।
अर्थ : दान के बराबर दसरा कोई और खजाना नहीं है,
लोभ के बराबर पृथ्वी पर दूसरा कोई शत्रु नहीं है,
विनम्रता के समान कोई दूसरा आभूषण नहीं है
और सन्तोष के बराबर कोई धन नहीं।
विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा,
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,
प्रकृतिसिद्धिमिदं हि महात्मनाम्।।
अर्थ : संकट के समय धैर्य, उन्नति में क्षमा,
सभा में वाणी बोलने की चतुरता,
युद्ध में पराक्रम कीर्ति में इच्छा तथा
वेद शास्त्रों को सुनने की लगन
ये गुण महान् व्यक्तियों में स्वभाव से ही होते हैं।
10 Shivaji Shlok of Sanskrit
पापान्निवारयति योजयते हिताय,
गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति।
आपदगतं च न जहाति ददाति काले,
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः।।
अर्थ : उत्तम मित्र अपने भित्र को
पापों से दूर करता है, हित भलाई. के कार्यों में लगाता है,
उसकी गुप्त बातों को छिपाता है,
गुणों को दर्शाता है प्रकट करता है,
आपत्ति पड़ने पर साथ नहीं छोड़ता,
समय पड़ने पर सहायता करता है।
महान् पुरुषों ने अच्छे मित्र के यही लक्षण बताये हैं।
निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।।
अद्यैव वा मरणस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।
अर्थ : नीति में निपुण लोगों की चाहें निन्दा करें
अथवा प्रशंसा, लक्ष्मी आये या अपनी इच्छानुसार चली जाये,
मृत्यु आज ही हो जाय या युग के बाद हो लेकिन
धैर्यशाली पुरुष न्याय के मार्ग से एक कदम पीछे नहीं हटते।।
साहित्य संगीन कलाविहीनः।
साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः।
तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।
अर्थ : जो व्यक्ति साहित्य संगीत व कला से रहित है,
वह पूँछ तथा सींगों बिना साक्षात् पशु के समान है।
यह पशुओं के लिए सौभाग्य की बात है कि
ऐसा व्यक्ति चारा न खाते हुए भी जीवन धारण करता है।
सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि
विषादो रणे न भीरुत्वम्।
तं भुवनत्रयतिलकं जनयति
जननी सुतं विरलम्।।
अर्थ : जिसको सुख सम्पत्ति. में प्रसन्न न हो,
संकट विपत्ति. में दु:ख न हो, युद्ध में भय
अथवा कायरता न हो, तीनों लोगों में महान्
ऐसे किसी पुत्र को ही माता कभी-कभी
ही जन्म देती है।
Shivaji Maharaj Shlok Sanskrit Mein
त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले,
धैर्यात् कदाचित् स्थितिमाप्नुयात् सः।
जाते समुद्रेऽपि हि पोत भंगे,
सांयात्रिकों वाञ्छति तर्तुमेव।।
अर्थ : संकट में भी मनुष्य को.
धीरज नहीं छोड़ना चाहिये, सम्भव है
धैर्य से स्थिति में कभी सुधार आ जावे।
जैसे समुद्र में जहाज के नष्ट हो जाने पर
यात्री तैरने की ही इच्छा करना चाहता है।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि,
पर्जन्यादन्नसम्भवः।।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो,
यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।
अर्थ : सम्पूर्ण प्राणी अन्न से पैदा होते हैं
तथा अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है,
वर्षा यज्ञ से और यज्ञ कर्म से पैदा होता है।
चञ्चलं हि मनः कृष्णः!
प्रमाथि वलवद् दृढ़म्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये
वायोरिव सुदुष्करम्।।
अर्थ : हे कृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल,
मथ डालने वाला बलवान तथा
अत्यन्त मजबूत है। मैं इसको वश में करना,
हवा को वश में करने के
समान अत्यन्त कठिन मानता हूँ।
यस्मान्नोद्विजते लोको
लोकान्नोद्विजते च यः।।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो
यः स च मे प्रियः।।
अर्थ : जिससे कोई जीव दु:खी नहीं होता है
तथा जो स्वयं भी किसी जीव से दु:खी नहीं होता है
तथा जो प्रसन्नता, मानसिक संताप,
भय और दु:खों से रहित है, वही भक्त मेरा प्यारा है।
Shivaji Shlok Sanskrit Mein Arth Sahit
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण!
न च राज्यं सुखानि च।
कि नो राज्येन गोविन्द!
कि भोगैर्जीवितेन वा।।
अर्थ : हे कृष्ण! मैं विजय की इच्छा नहीं चाहता,
राज्य तथा सुखों को पाने की भी मेरी इच्छा नहीं है।
हे गोविन्द ! हमें राज्य भोग अथवा
जीवित रहने से क्या अर्थ है?
Shivaji Sanskrit Shloka From Bhagavad Gita
सुखदुःखे समे कृत्वा,
लाभालाभौ जयाजयौ।।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैब
पापमवाप्स्यसि।।
अर्थ : हे अर्जुन! सुख-दु:ख, लाभ-हानि,
जीत-हार आदि सभी को समान समझकर
युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
तुम को पाप नहीं लगेगा अर्थात्
पापी नहीं कहलाओगे।
Shivaji Shlok of Sanskrit Mahabhrat
यत्र योगेश्वरः
कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिधुवा
नीतिर्मतिर्मम्।।
अर्थ : जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं
और जहाँ धनुषधारी अर्जुन हैं,
वहाँ विजय तथा निश्चय ही कल्याण है।
यही मेरी राय तथा नीति है।
क्लैब्यं मा स्म गमः
पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं
त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतम।।
अर्थ : हे अर्जुन! तू कायरता
को प्राप्त मत हो क्योंकि तेरे लिए
यह उचित नहीं है हृदय की इस तुच्छ
दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़ा हो जा।
Shivaji Sanskrit Shlok Class 8
वासासि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थ : जिस प्रकार मनुष्य पुराने जीर्ण-शीर्ण
वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये
वस्त्रों को धारण करता है।
उसी प्रकार जीवात्मा पुराने शरीर को
त्याग कर नये शरीर में प्रवेश करती है।
नैनं छिन्दति शस्त्राणि
नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्तापो
न शोषयति मारुतः।।
अर्थ : इस आत्मा को न
शस्त्र काट सकते हैं,
न अग्नि जला सकती है,
पानी इसको गला नहीं सकता तथा
वायु इसे सुखा नहीं सकती।
Shivaji Maharaj Sanskrit Shlok on Vidya
विद्या ददाति विनयं
विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं
ततः सुखम्॥
अर्थ : विद्या से विनय नम्रता आती है,
विनय से पात्रता सजनता आती है
पात्रता से धन की प्राप्ति होती है,
धन से धर्म और धर्म से
सुख की प्राप्ति होती है ।
विद्याभ्यास स्तपो
ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः।
अहिंसा गुरुसेवा च
निःश्रेयसकरं परम् ॥
अर्थ : विद्याभ्यास, तप,
ज्ञान, इंद्रिय-संयम,
अहिंसा और गुरुसेवा
ये परम् कल्याणकारक हैं